डूबा यादों का सफीना माजी के बहर में ||
न मिला उसको ढूंढना चाहा हर इक लहर में ||
बोला न कोई मुहब्बत से ,हम से दोस्तों ,
हम अजनबी हुए हैं अपने ही शहर में ||
गर दे हैं वो ज़हर भी हमको अपने हाथ से ,
लगती है अज़ब मिठास हमको उनके ज़हर में ||
खण्डहर हुए अरमान मेरे साथ वक्त के तो क्या ,
है इक रशिमे-नूर अरमानों के खण्डहर में ||
वो पूछें हैं हाल ,मगर बताएं कैसे उसे ,
कैसे महफूज़ रह सकते हैं ऐसे कहर में ||
न मिला उसको ढूंढना चाहा हर इक लहर में ||
बोला न कोई मुहब्बत से ,हम से दोस्तों ,
हम अजनबी हुए हैं अपने ही शहर में ||
गर दे हैं वो ज़हर भी हमको अपने हाथ से ,
लगती है अज़ब मिठास हमको उनके ज़हर में ||
खण्डहर हुए अरमान मेरे साथ वक्त के तो क्या ,
है इक रशिमे-नूर अरमानों के खण्डहर में ||
वो पूछें हैं हाल ,मगर बताएं कैसे उसे ,
कैसे महफूज़ रह सकते हैं ऐसे कहर में ||
बहूत हि सुंदर गजब के भाव है ..
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग पर भी आपका
स्वागत है
mauryareena.blogspot.com
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-784:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteGyan Darpan
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