मुहब्बत होती है इक हसीं ज़ज्बा दो दिलों का ,
ज़रूरी नहीं इसके लिए ख़त खूं से लिखा होना |
ज़रूरी नहीं इसके लिए ख़त खूं से लिखा होना |
करके वायदा उनसे खुद ही मुकर गए हम ,
तो जायज़ ही था उनका हमसे खफा होना |
तो जायज़ ही था उनका हमसे खफा होना |
यही अदा है उनकी मुहब्बत के इज़हार की ,
लबों पे तब्बसुम और नज़रों का झुका होना |
लबों पे तब्बसुम और नज़रों का झुका होना |
अगर हैसियत ही नहीं कुछ पाने की हमारी ,तो ,
कहाँ की अक्लमंदी है हर हसीं शै पे फ़िदा होना |
कहाँ की अक्लमंदी है हर हसीं शै पे फ़िदा होना |
"नज़ील" जिंदगी से भी अज़ीज़ है वो हमको ,
होगी हमारी रुसवाई उनका रुसवा होना ||
होगी हमारी रुसवाई उनका रुसवा होना ||
वाह....!!
ReplyDeleteक्या बात है.....
दिल को छू लेने वाली गजल.....
खासकर ये दो लाईनें,
'मुहब्बत होती है इक हसीं ज़ज्बा दो दिलों का ,
ज़रूरी नहीं इसके लिए ख़त खूं से लिखा होना |'
धन्यावाद अतुल जी ....हार्दिक आभार ...:)
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-737:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
शानदार गज़ल नजील साहब....
ReplyDeleteसादर बधाई......
बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteधन्यवाद दिलबाग जी ,हबीब जी ,अंजू जी ...... आपका हार्दिक आभार ..:)
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