जाने कितनी शामें हिज़्र में ढलती रही |
पर इक शमए-उम्मीदे -वस्ल जलती रही ||
चाहे पा न सके हम कोशिशो के बाद भी ,
दिल में उनको पाने की मंशा पलती रही ||
वक्ते-हनोज़ कटा है जो फुरकते -यार में,
उसमें हमारी रूह तर्हे-मोम पिघलती रही ||
छोड़ा ना दिल हमने मुश्किलाते- हियात में ,
कुछ-बादे वक्त इक -इक होके टलती रही ||
आगाज़े-शिकस्ते-कीमते-दिल जब हुई ,
तो भी अपने दिल की कीमते बढती रही ||
माहिर थे हम फने-दिलसितानी में पर,
उनको न पाने में हमसे कहाँ गलती रही||
खाना-जादे-ज़ुल्फ़ हुए "नज़ील" हम उनके ,
जीना बेहाल हुआ पर साँसे चलती रही ||
पर इक शमए-उम्मीदे -वस्ल जलती रही ||
चाहे पा न सके हम कोशिशो के बाद भी ,
दिल में उनको पाने की मंशा पलती रही ||
वक्ते-हनोज़ कटा है जो फुरकते -यार में,
उसमें हमारी रूह तर्हे-मोम पिघलती रही ||
छोड़ा ना दिल हमने मुश्किलाते- हियात में ,
कुछ-बादे वक्त इक -इक होके टलती रही ||
आगाज़े-शिकस्ते-कीमते-दिल जब हुई ,
तो भी अपने दिल की कीमते बढती रही ||
माहिर थे हम फने-दिलसितानी में पर,
उनको न पाने में हमसे कहाँ गलती रही||
खाना-जादे-ज़ुल्फ़ हुए "नज़ील" हम उनके ,
जीना बेहाल हुआ पर साँसे चलती रही ||
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteGyan Darpan
..
धन्यवाद रतन सिंह शेखावत जी आपका हार्दिक आभार ...:)
Deleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-756:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
धन्यवाद दिलबाग जी आपका हार्दिक आभार ...:)
Deleteumda gazal.
ReplyDeleteधन्यवाद सुरेन्दर सिंह जी आपका हार्दिक आभार ...:)
Deletebehtarin prastuti....
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