मुझ पर चलते दौरे -गर्दिशों को सोचता हूँ ||
उस सबब लगी खुद पर बंदिशों को सोचता हूँ ||
मजबूरी के सबब हुई न पूरी आज तक जो ,
मैं दिल में दफ़न उन ख्वाहिशों को सोचता हूँ ||
तन्हा, यादों में जब बैठता हूँ मैं कभी तो ,
उनके साथ बिताई बारिशों को सोचता हूँ ||
सर्द हवाओं के मौसम में ना जाने क्यों मैं ,
हर बार तेरी साँसों की तपिशों को सोचता हूँ ||
इक छोटे -से झगडे से हुई गलतफहमी से ,
आज हमारे दरमियाँ रन्जिशों को सोचता हूँ ||
अपनी जिंदगी में किसी की मुहब्बत पा सकने की ,
मेरी नाकाम हुई कोशिशो को सोचता हूँ ||
उस सबब लगी खुद पर बंदिशों को सोचता हूँ ||
मजबूरी के सबब हुई न पूरी आज तक जो ,
मैं दिल में दफ़न उन ख्वाहिशों को सोचता हूँ ||
तन्हा, यादों में जब बैठता हूँ मैं कभी तो ,
उनके साथ बिताई बारिशों को सोचता हूँ ||
सर्द हवाओं के मौसम में ना जाने क्यों मैं ,
हर बार तेरी साँसों की तपिशों को सोचता हूँ ||
इक छोटे -से झगडे से हुई गलतफहमी से ,
आज हमारे दरमियाँ रन्जिशों को सोचता हूँ ||
अपनी जिंदगी में किसी की मुहब्बत पा सकने की ,
मेरी नाकाम हुई कोशिशो को सोचता हूँ ||
बात -चीत करके भी गलतफहमी का हाल किया जा
ReplyDeleteसकता है , सुंदर और गहरे भाव से लिखी कविता है --
धन्यवाद रीना मौर्या जी ..... हार्दिक आभार
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