Wednesday, March 28, 2012

वो रूठ जाते हैं बेवजह ही

हर दिन ज़िन्दगी से जूझता हूँ |
हर मोड़ पर मंजिलें ढूढता हूँ ||
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वो रूठ जाते हैं बेवजह ही ,
उनसे भला मैं कब रूठता हूँ |
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मजबूरी का बनके पासबां मैं ,
अरमान अपने ही लूटता हूँ |
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अपना गम छुपाने के लिए अब,
मैं हाल औरों से पूछता हूँ |
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मैं आज नफरत के दौर में भी,
तेरी उल्फ़त कहाँ भूलता हूँ |
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हर बार फिर उठता हूँ मैं ,चाहे ,
दिन में कई बारी टूटता हूँ ||

Wednesday, March 21, 2012

माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं

माहो-अख्तर के बिना आसमां  हूँ मैं ,
.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |

अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |
पढने वालों के लिए  इम्तहाँ हूँ मैं |
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चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा ,
उस दौलत -ऐ-हुस्न का पासबाँ हूँ मैं |
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छिप सकता है दर्द तेरा ,भला कैसे
तुम्हारे हर राज़ का राज़दां हूँ मैं |
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या एजद! जाऊं कहीं और मैं कैसे ,
जब तेरे दर का संगे- आस्तां हूँ मैं|
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कोई भी आकर बसे तो ख़ुशी होगी,
बहुत  वक्त से एक सूना मकां हूँ मैं |
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माना  लिखता हूँ सुख़न मैं बहुत अच्छा  ,
फिर भी ग़ालिब -सा सुख़नवर कहाँ हूँ मैं |

Wednesday, February 29, 2012

निभाएगी साथ उल्फत जब तलक उनकी ||

जुदाई के नाम आँखे आई छलक उनकी ||
दर्द के अहसास से खुद-ब-खुद झुकी पलक उनकी ||


कभी हारेंगे नहीं हम अपने  दुश्मन ज़हां से ,
निभाएगी साथ उल्फत जब तलक उनकी ||


खुदा जाने ,हाल होगा उनका भी अपने जैसा ,
जिस तरह हम तरसते हैं पाने को झलक उनकी ||


बहाएं अश्क शब् की तन्हाई में बैठ कर वो ,
सुनाए है दास्ताँ अक्सर हमको फलक उनकी ||


"नजील" अब्र भी शर्माए है देखकर ये नज़ारा ,
घटा बन के आसमां पे छाई जो अलक उनकी ||
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