Thursday, April 2, 2015

वो सताए है मुझे यादों में शामो - सहर

जिंदगी मेरी कहाँ जाके गई है तू ठहर ॥
ले गई है फिर वहां ,जो छोड़ आया था  शहर

है खुदा भी एक ,एक ही आसमां , एक ही  ज़मीं
सरहदों पर किस लिए हमने मचाया है  कहर 

मारता आया है बरसों  बाद भी अक्सर  हमें ॥
घुल गया था जो दिलों  में  लकीरो  का जहर

भूल कर भी भूल सकता हूँ भला कैसे  उसे  ,
वो सताए है मुझे यादों में शामो - सहर

वायदा करके नहीं आये अभी तक क्यों  भला ,
यूँ अकेला बैठ कर कब तक  गिनूँगा मैं  पहर ।

सूखी थी दिल की ज़मीं ,आबाद जो  फिर से हुई ,
यूँ लगे है छू गई  इसको  मुहब्बत  की  लहर ॥

Sunday, March 29, 2015

वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल

खामोश से रहने लगे हैं आजकल ॥
हम रात भर जगने लगे हैं आजकल ॥
इन महफ़िलों को क्या हुआ किसको पता ,
सब  चेहरे ढलने लगे है आजकल ॥
सदियों से लूटा है खुदा के नाम पे ,
तो कब नया ठगने लगे है आज कल ॥
निभते नहीं हैं जो सियासत में कभी ,
वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल ॥
कैसे कहें , कितना चाहें हैं उसे ,
बस सोच के डरने लगे हैं आज कल ॥
मालूम होता तो बता पाते तुझे ,
वो दूर क्यों हटने लगे हैं आज कल ॥
अब क्या कहें तुमको कि तेरे ही सबब ,
हम पे सवाल उठने लगे है आज कल ॥

Monday, March 16, 2015

माना होता खुदा को एक हमने

लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||
तो अपने नाम पर बाबा लगा होता ||
तूं तूं - मैं मैं न होती इस कदर हम में ,
तेरा मेरा अगर इक रास्ता होता ||
माना होता खुदा को एक हमने तो ,
फिर घर न कोई किसी का जला होता ||
उनको आया नज़र फर्के- लिबासां ही ,
काश !ये इक रंग का खूं भी दिखा होता ||
फिर मैं भी मानता परवाह है उसको ,
ग़र आंसू पोंछ बांहो में कसा होता ||
समझौता कर लिया हालात से उसने ,
हो जाती जीत ग़र ज़िद पे अड़ा होता||
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