खामोश से रहने लगे हैं आजकल ॥
हम रात भर जगने लगे हैं आजकल ॥
हम रात भर जगने लगे हैं आजकल ॥
इन महफ़िलों को क्या हुआ किसको पता ,
सब चेहरे ढलने लगे है आजकल ॥
सब चेहरे ढलने लगे है आजकल ॥
सदियों से लूटा है खुदा के नाम पे ,
तो कब नया ठगने लगे है आज कल ॥
तो कब नया ठगने लगे है आज कल ॥
निभते नहीं हैं जो सियासत में कभी ,
वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल ॥
वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल ॥
कैसे कहें , कितना चाहें हैं उसे ,
बस सोच के डरने लगे हैं आज कल ॥
बस सोच के डरने लगे हैं आज कल ॥
मालूम होता तो बता पाते तुझे ,
वो दूर क्यों हटने लगे हैं आज कल ॥
वो दूर क्यों हटने लगे हैं आज कल ॥
अब क्या कहें तुमको कि तेरे ही सबब ,
हम पे सवाल उठने लगे है आज कल ॥
हम पे सवाल उठने लगे है आज कल ॥
आपकी इस प्रस्तति का लिंक 02-04-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1936 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवाद दिलबाग जी।
Deleteहर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteहौंसला देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय संजय भास्कर जी। …
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