Monday, March 16, 2015

माना होता खुदा को एक हमने

लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||
तो अपने नाम पर बाबा लगा होता ||
तूं तूं - मैं मैं न होती इस कदर हम में ,
तेरा मेरा अगर इक रास्ता होता ||
माना होता खुदा को एक हमने तो ,
फिर घर न कोई किसी का जला होता ||
उनको आया नज़र फर्के- लिबासां ही ,
काश !ये इक रंग का खूं भी दिखा होता ||
फिर मैं भी मानता परवाह है उसको ,
ग़र आंसू पोंछ बांहो में कसा होता ||
समझौता कर लिया हालात से उसने ,
हो जाती जीत ग़र ज़िद पे अड़ा होता||

Monday, April 23, 2012

चौराहे पे हुई इबादत को कम ना आंकिये

झूठ के दौर में भी सदाकत को कम ना आंकिये ।
वतन के लिए हुई शहादत को कम ना आंकिये ।।

झुका देती है अक्सर ही  वो रियासतों  को ,
मजबूर आदमी की बगावत को कम ना आंकिये ।।

बुझ  गए  है  जो  जद्दोज़हद में  आँधियों  से ,
उन चिरागों की शहादत को कम न आंकिये ।।

गिरा देती है अक्सर बड़े-बड़े हाथियों को भी ,
अदानी-सी चींटी की ताकत को कम ना आंकिये ।।

शमा  को  फर्क  पड़े  या  न पड़े कोई बात नहीं ,
परवाने की जल मरने की आदत को कम न आंकिये  ।।

बड़े -बड़े ढेर भी अक्सर राख हो जाते है पलों में  ,
बुझती चिंगारी की  घास से अदावत को  कम ना  आंकिये ।।

ज़रूरी नहीं कि मंदिर जाऊं मैं खुदा के लिए  ,
चौराहे पे हुई इबादत को  कम ना आंकिये ।।

रुसवा करने को काफी होता है एक इशारा ही ,
"नजील" बज़्म में आँखों की शरारत को कम ना आंकिये 
 

Wednesday, March 28, 2012

वो रूठ जाते हैं बेवजह ही

हर दिन ज़िन्दगी से जूझता हूँ |
हर मोड़ पर मंजिलें ढूढता हूँ ||
.
वो रूठ जाते हैं बेवजह ही ,
उनसे भला मैं कब रूठता हूँ |
.
मजबूरी का बनके पासबां मैं ,
अरमान अपने ही लूटता हूँ |
.
अपना गम छुपाने के लिए अब,
मैं हाल औरों से पूछता हूँ |
.
मैं आज नफरत के दौर में भी,
तेरी उल्फ़त कहाँ भूलता हूँ |
.
हर बार फिर उठता हूँ मैं ,चाहे ,
दिन में कई बारी टूटता हूँ ||
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